Shodashi No Further a Mystery

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Shodashi’s mantra encourages self-willpower and mindfulness. By chanting this mantra, devotees cultivate better Command around their feelings and steps, leading to a more mindful and purposeful approach to lifetime. This profit supports own advancement and self-self-discipline.

The Mahavidya Shodashi Mantra supports psychological balance, marketing healing from previous traumas and inner peace. By chanting this mantra, devotees find launch from detrimental feelings, producing a well balanced and resilient mindset that can help them confront everyday living’s challenges gracefully.

सानन्दं ध्यानयोगाद्विसगुणसद्दशी दृश्यते चित्तमध्ये ।

Shiva utilized the ashes, and adjacent mud to once again variety Kama. Then, with their yogic powers, they breathed daily life into Kama in this kind of way that he was animated and really effective at sadhana. As Kama continued his sadhana, he step by step gained ability above Other people. Entirely aware on the opportunity for difficulties, Shiva performed alongside. When Shiva was questioned by Kama for your boon to own fifty percent of the power of his adversaries, Shiva granted it.

सा नित्यं मामकीने हृदयसरसिजे वासमङ्गीकरोतु ॥१४॥

ह्रीं श्रीं क्लीं त्रिपुरामदने सर्वशुभं साधय स्वाहा॥

क्या आप ये प्रातः स्मरण मंत्र जानते हैं ? प्रातः वंदना करने की पूरी विधि

Chanting the Mahavidya Shodashi Mantra makes a spiritual defend all over devotees, defending them from negativity and hazardous influences. This mantra acts for a supply of protection, aiding folks sustain a positive atmosphere free from psychological and spiritual disturbances.

The Shodashi Mantra is a 28 letter Mantra and so, it is without doubt one of the most basic and least difficult Mantras so that you can recite, recall and chant.

श्रीं‍मन्त्रार्थस्वरूपा श्रितजनदुरितध्वान्तहन्त्री शरण्या

यह देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय युवती के रूप में विद्यमान हैं। जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) में सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर, चिर यौवन वाली हैं। जो आज भी यौवनावस्था धारण किये हुए है, तथा सोलह कला से पूर्ण सम्पन्न है। सोलह अंक जोकि पूर्णतः का प्रतीक है। सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण माना जाता हैं।

ह्रीं ह्रीं ह्रीमित्यजस्रं हृदयसरसिजे भावयेऽहं भवानीम् ॥११॥

ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं तां वन्दे सिद्धमातृकाम् ॥५॥

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से click here देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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